लेखनी कहानी -18-Feb-2024
मन की पीड़ा
काल पहिये से मैं अपने हुनर में दलता रहा सावधानी रख में सफलता द्वार की चुनर सें चलता रहा
वक्त की चालाकी से हालाकि रक्त रंजित कटार सिर छोड़ निकल गयी सख्त रवैया देख चालाकी से तख्त की दावेदारी उतार रख निकल गयी
पीड़ा नही मन में लख्ख की. रवानगी का पर उदास मन की पीड़ा बड़ी अजीब थी
बीड़ा उठाया जिम्मेदारी से बक्त की -चालाकी को माप मन से उसकी स्थिति अजीब थी
दाव खेलता देख उस हुस्न परी को मेरे साथ हाथ उठाकर यू चलती थी मानो टूटी कश्ती का सवार आज तिनके को उठाकर यू चलती थी
Gunjan Kamal
20-Feb-2024 02:41 PM
👌🏻👏🏻
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Mohammed urooj khan
19-Feb-2024 11:39 AM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Rupesh Kumar
18-Feb-2024 06:04 PM
बहुत खूब
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